37
पपपपपपपप

पपपपपपपप - Hindustan Books · 2012. 9. 14. · कथा-कम पितशोध : 3 देवी : 15 खुदी : 17 बडे बाबू : 23 राषटकासेवक

  • Upload
    others

  • View
    5

  • Download
    0

Embed Size (px)

Citation preview

  • पपपपपपपप

  • कथा-कम

    पितशोध : 3देवी : 15खुदी : 17

    बडे बाबू : 23 राषट का सेवक: 34

    आिखरी तोहफा: 35 काितल : 49

    2

  • पपपपपपपप

    या अपने ितमंिजले मकान की छत पर खडी सडक की ओर उिदगन और अधीर आंखो से ताक रही थी और सोच रही थी, वह अब तक आये कयो नही ? कहा दरे लगायी ? इसी

    गाडी से आने को िलखा था। गाडी तो आ गयी होगी, सटेशन से मुसािफर चले आ रहे है। इस वकत तो कोई दसूरी गाडी नही आती। शायद असबाब वगैरह रखने मे देर हुई, यार-दोसत

    सटेशन पर बधाई देने के िलए पहुचँ गये हो, उनसे फुसरत िमलेगी, तब घर की सुध आयेगी ! उनकी जगह मै होती तो सीधे घर आती। दोसतो से कह देती , जनाब, इस वकत मुझे माफ

    कीिजए, िफर िमिलएगा। मगर दोसतो मे तो उनकी जान बसती है !

    मा

    िमसटर वयास लखनऊ के नौजवान मगर अतयतं पितिषत बैिरसटरो मे है। तीन महीने से वह एक राजीितक मुकदमे की पैरवी करने के िलए सरकार की ओर से लाहौर गए हुए हे।

    — उनहोने माया को िलखा था जीत हो गयी। पहली तारीख को मै शाम की मेल मे जरर पहुंचूंगा। आज वही शाम है। माया ने आज सारा िदन तैयािरयो मे िबताया। सारा मकान धुलवाया। कमरो की सजावट के सामान साफ कराये, मोटर धुलवायी। ये तीन महीने उसने

    तपसया के काटे थे। मगर अब तक िमसटर वयास नही आये। उसकी छोटी बचची ितलोतमा —आकर उसके परैो मे िचमट गयी और बोली अममा, बाबजूी कब आयेगे ?

    — माया ने उसे गोद मे उठा िलया और चमूकर बोली आते ही होगे बेटी, गाडी तो कब की आ गयी।

    — ितलोतमा मेरे िलए अचछी गुिडया लाते होगे। माया ने कछु जवाब न िदया। इनतजार अब गुससे मे बदलता जाता था। वह सोच रही

    थी, िजस तरह मुझे हजरत परेशान कर रहे है, उसी तरह मै भी उनको परेशान करँगी। घणट-े भर तक बोलूंगी ही नही। आकर सटेशन पर बैठे हुए है ? जलाने मे उनहे मजा आता है ।

    यह उनकी परुानी आदत है। िदल को कया करँ। नही, जी तो यही चाहता है िक जैसे वह मुझसे बेरखी िदखलाते है, उसी तरह मै भी उनकी बात न पछूूँ।

    — यकायक एक नौकर ने ऊपर आकर कहा बहू जी, लाहौर से यह तार आया है। माया अनदर-ही- अनदर जल उठी। उसे ऐसा मालमू हुआ िक जैसे बडे जोर की हरारत

    — हो गयी हो। बरबस खयाल आया िसवाय इसके और कया िलखा होगा िक इस गाडी से न आ सकूंगा। तार दे देना कौन मुिशकल है। मै भी कयो न तार दे दूं िक मै एक महीने के िलए मैके

    — जा रही हूँ। नौकर से कहा तार ले जाकर कमरे मे मेज पर रख दो। मगर िफर कछु सोचकर उसने िलफाफा ले िलया और खोला ही था िक कागज हाथ से छूटकर िगर पडा।

    — िलखा था िमसटर वयास को आज दस बजे रात िकसी बदमाश ने कतल कर िदया।२

    ई महीने बीत गये। मगर खनूी का अब तक पता नही चला। खुिफया पुिलस के अनुभवी लोग उसका सरुाग लगाने की िफक मे परेशान है। खनूी को िगरफतार करा

    देनवेाले को बीस हजार रपये इनाम िदये जाने का एलान कर िदया गया है। मगर कोई नतीजा नही ।

    क िजस होटल मे िमसटर वयास ठहरे थे, उसी मे एक महीने से माया ठहरी हुई है। उस

    कमरे से उसे पयार- सा हो गया है। उसकी सरूत इतनी बदल गयी है िक अब उसे पहचानना मुिशकल है। मगर उसके चेहरे पर बेकसी या ददर का पीलापन नही कोध की गमी िदखाई

    पडती है। उसकी नशीली ऑंखो मे अब खनू की पयास है और पितशोध की लपट। उसके शरीर का एक- एक कण पितशोध की आग से जला जा रहा है। अब यही उसके जीवन का

    धयेय, यही उसकी सबसे बडी अिभलाषा है। उसके पेम की सारी िनिध अब यही पितशोध का आवेग है। िजस पापी ने उसके जीवन का सवरनाश कर िदया उसे अपने सामने तडपते देखकर ही उसकी आंखे ठणडी होगी। खुिफया पुिलस भय और लोभ, जॉँच और पडताल से

    3

  • काम ले रही है, मगर माया ने अपने लकय पर पहुचँने के िलए एक दसूरा ही रासता अपनाया है। िमसटर वयास को पेत- िवदा से लगाव था। उनकी संगित मे माया ने कुछ आरिमभक

    अभयास िकया था। उस वकत उसके िलए यह एक मनोरजंन था। मगर अब यही उसके जीवन का समबल था। वह रोजाना ितलोतमा पर अमल करती और रोज-ब- रोज अभयास बढाती जाती थी। वह उस िदन का इनतजार कर रही थी जब अपने पित की आतमा को बुलाकर उससे खनूी का सुराग लगा सकेगी। वह बडी लगन से, बडी एकागिचतता से अपने

    काम मे वयसत थी। रात के दस बज गये थे। माया ने कमरे को अंधरेा कर िदया था और ितलोतमा पर अभयास कर रही थी। यकायक उसे ऐसा मालमू िक कमरे मे कोई िदवय वयिकततव आया। बझुते हुए दीपक की अंितम झलक की तरह एक रोशनी नजर आयी।

    — माया ने पछूा आप कौन है ? — ितलोतमा ने हसंकर कहा तुम मुझे नही पहचानती ? मै ही तुमहारा मनमोहन हूँ जो

    दुिनया मे िमसटर वयास के नाम से मशहूर था।‘ ’आप खबू आये। मै आपसे खनूी का नाम पछूना चाहती हूँ।‘ उसका नाम ह,ै ’ईशरदास।‘ कहा रहता है ?’‘ ’शाहजहॉपुर।

    माया ने मुहलले का नाम, मकान का नमबर, सरूत-शकल, सब कुछ िवसतार के साथ पछूा और कागज पर नोट कर िलया। ितलोतमा जरा देर मे उठ बैठी। जब कमरे मे िफर

    रोशनी हुई तो माया का मुरझाया हुआ चेहरा िवजय की पसनता से चमक रहा था। उसके शरीर मे एक नया जोश लहरे मार रहा था िक जैसे पयास से मरते हुए मुसािफर को पानी िमल

    गया हो। उसी रात को माया ने लाहौर से शाहजहापुर आने का इरादा िकया।

    ३ त का वकत। पजंाब मेल बडी तेजी से अंधेरे को चीरती हुई चली जा रही थी। माया एक

    सेकेणड कलास के कमरे मे बैठी सोच रही थी िक शाहजहॉपरु मे कहा ठहरेगी, कैसे ईशरदास का मकान तलाशा करेगी और कैसे उससे खनू का बदला लेगी। उसके बगल मे ितलोतमा बेखबर सो रही थी सामने ऊपर के बथर पर एक आदमी नीद मे गािफल पडा हुआ

    था।

    रा यकायक गाडी का कमरा खुला और दो आदमी कोट- पतलनू पहने हुए कमरे मे

    दािखल हुए। दोनो अंगेज थे। एक माया की तरफ बैठा और दसूरा दसूरी तरफ। माया िसमटकर बैठ गयी । इन आदिमयो को यो बैठना उसे बहुत बरुा मालमू हुआ। वह कहना

    चाहती थी, आप लोग दसूरी तरफ बैठे, पर वही औरत जो खनू का बदला लेने जा रही थी, सामने यह खतरा देखकर काप उठी। वह दोनो शैतान उसे िसमटते देखकर और भी करीब

    आ गये। माया अब वहा न बैठी रह सकी । वह उठकर दसूरे वथर पर जाना चाहती थी िक उनमे से एक ने उसका हाथ पकड िलया । माया ने जोर से हाथ छडुाने की कोिशश करके — कहा तुमहारी शामत तो नही आयी ह,ै छोड दो मेरा हाथ, सुअर ?

    इस पर दसूरे आदमी ने उठकर माया को सीने से िलपटा िलया। और लडखडाती हुई — जबान से बोला वले हम तुमका बहुत- सा रपया देगा।

    — माया ने उसे सारी ताकत से ढकेलने की कोिशश करते हुए कहा हट जा हरामजादे, वना अभी तरेा सर तोड दूंगी।

    दसूरा आदमी भी उठ खडा हुआ और दोनो िमलकर माया को बथर पर िलटाने की कोिशश करने लगे ।यकायक यह खटपट सुनकर ऊपर के बथर पर सोया हुआ आदी चौका

    और उन बदमाशो की हरकत देखकर ऊपर से कूद पडा। दोनो गोरे उसे देखकर माया को छोड उसकी तरफ झपटे और उसे घूंसे मारने लगे। दोनो उस पर ताबडतोडं हमला कर रहे

    4

  • थे और वह हाथो से अपने को बचा रहा था। उसे वार करने का कोई मौका न िमलता था। यकायक उसने उचककर अपने िबसतर मे से एक छूरा िनकाल िदया और आसतीने समेटकर

    — बोला तुम दोनो अगर अभी बाहर न चले गये तो मै एक को भी जीता ना छोडुँगा। दोनो गोरे छरुा देखकर डरे मगर वह भी िनहतथे न थे। एक ने जेब से िरवालवर िनकल

    िलया और उसकी नली उस आदमी की तरफ करके बोला- िनकल जाओ, रैसकल ! माया थर- थर काप रही थी िक न जाने कया आफत आने वाली हे । मगर खतरा

    हमारी िछपी हुई िहममतो की कुजंी है। खतरे मे पडकर हम भय की सीमाओं से आगे बढ जाते है कछु कर गुजरते है िजस पर हमे खुद हैरत होती है। वही माया जो अब तक थर- थर काप

    रही थी, िबलली की तरह कूद कर उस गोरे की तरफ लपकी और उसके हाथ से िरवालवर खीचकर गाडी के नीचे फेक िदया। गोरे ने िखिसयाकर माया को दात काटना चाहा मगर माया

    ने जलदी से हाथ खीच िलया और खतरे की जजंीर के पास जाकर उसे जोर से खीचा। दसूरा गोरा अब तक िकनारे खडा था। उसके पास कोई हिथयार न था इसिलए वह छुरी के सामने न आना चाहता था। जब उसने देखा िक माया ने जजंीर खीच ली तो भीतर का दरवाजा खोलकर भागा। उसका साथी भी उसके पीछे- पीछे भागा। चलत-े चलते छरुी वाले

    आदमी ने उसे इतने जोर से धका िदया िक वह मुंह के बल िगर पडा। िफर तो उसने इतनी ठोकरे, इतनी लाते और इतने घुंसे जमाये िक उसके मुंह से खनू िनकल पडा। इतने मे गाडी

    रक गयी और गाडर लालटेन िलये आता िदखायी िदया।४

    गर वह दोनो शैतान गाडी को रकते देख बेतहाशा नीचे कूद पडे और उस अंधेरे मे न जाने कहा खो गये । गाडर ने भी जयादा छानबीन न की और करता भी तो उस अंधरेे मे पता

    लगाना मुिशकल था । दोनो तरफ खडड थे, शायद िकसी नदी के पास थी। वहा दो कया दो सौ आदमी उस वकत बडी आसानी से िछप सकते थे। दस िमनट तक गाडी खडी रही, िफर चल पडी।

    — माया ने मुिकत की सास लेकर कहा आप आज न होते तो ईशर ही जाने मेरा कया हाल होता आपके कही चोट तो नही आयी ?

    — उस आदमी ने छरुे को जेब मे रखते हुए कहा िबलकुल नही। मै ऐसा बेसुध सोया हुआ था िक उन बदमाशो के आने की खबर ही न हुई। वना मैने उनहे अनदर पाव ही न रखने िदया होता । अगले सटेशन पर िरपोटर करँगा।

    — माया जी नही, खामखाह की बदनामी और परेशानी होगी। िरपोटर करने से कोई फायदा नही। ईशर ने आज मरेी आबर रख ली। मेरा कलेजा अभी तक धड- धड कर रहा

    है। आप कहा तक चलेगे?‘ ’मुझे शाहजहॉपरु जाना है।‘ वही तक तो मुझे भी जाना है। शुभ नाम कया है ? कम से कम अपने उपकारक के

    नाम से तो अपिरिचत न रहूँ।‘ मुझे तो ईशरदास कहते है।‘ माया का कलेजा धक् से हो गया। जरर यह वही खनूी है, इसकी शकल- सरूत भी

    वही है जो उसे बतलायी गयी थी उसने डरत-े — डरते पछूा आपका मकान िकस मुहलले मे है ?‘..... मे रहता हूँ।

    माया का िदल बैठ गया। उसने िखडकी से िसर बाहर िनकालकर एक लमबी सास ली। हाय ! खनूी िमला भी तो इस हालत मे जब वह उसके एहसान के बोझ से दबी हईु है ! कया उस आदमी को वह खंजर का िनशाना बना सकती है, िजसने बगरै िकसी पिरचय के िसफर हमददी के जोश मे ऐसे गाढे वकत मे उसकी मदद की ? जान पर खेल गया ? वह एक अजीब उलझन मे पड गयी । उसने उसके चेहरे की तरफ देखा, शराफत झलक रही थी।

    ऐसा आदमी खनू कर सकता ह,ै इसमे उसे सनदेह था

    5

  • — ईशरदास ने पछूा आप लाहौर से आ रही है न ? शाहजहापरु मे कहा जाइएगा ?‘ अभी तो कही धमरशाला मे ठहरंगी, ’मकान का इनतजाम करना है।

    — ईशरदास ने ताजजुब से पछूा तो वहा आप िकसी दोसत या िरशतेदार के यहा नही जा रही है?

    ‘ ’कोई न कोई िमल ही जाएगा।‘ यो आपका असली मकान कहा ह?ै’‘ असली मकान पहले लखनऊ था, ’अब कही नही है। मै बेवा हूँ।

    ५ शर दास ने शाहजहॉँपुर मे माया के िलए एक अचछा मकान तय कर िदया । एक नौकर भी रख िदया । िदन मे कई बार हाल- चाल पछूने आता। माया िकतना ही चाहती थी िक

    उसके एहसान न ले, उससे घिनषता न पैदा करे, मगर वह इतना नेक, इतना बामरुौवत और शरीफ था िक माया मजबरू हो जाती थी।

    ई एक िदन वह कई गमले और फनीचर लकेर आया। कई खबूसरूत तसवीरे भी थी।

    — माया ने तयौिरया चढाकर कहा मुझे साज- सामान की िबलकुल जररत नही, आप नाहक तकलीफ करते है।

    —ईशरदास ने इस तरह लिजजत होकर िक जैसे उससे कोई भलू हो गयी हो कहा मरेे घर मे यह चीजे बकेार पडी थी, लाकर रख दी।

    ‘ मै इन टीम- ’टाम की चीजो का गुलाम नही बनना चाहती। ईशरदास ने डरत-े – डरते कहा अगर आपको नागवार हो तो उठवा ले जाऊँ ?

    माया ने देखा िक उसकी ऑंखे भर आयी है, — मजबरू होकर बोली अब आप ले आये है तो रहने दीिजए। मगर आगे से कोई ऐसी चीज न लाइएगा

    एक िदन माया का नौकर न आया। माया ने आठ- नौ बजे तक उसकी राह देखी जब अब भी वह न आया तो उसने जूठे बतरन माजना शुर िकया। उसे कभी अपने हाथ से चौका

    – बतरन करने का संयोग न हआु था। बार- बार अपनी हालत पर रोना आता था एक िदन वह था िक उसके घर मे नौकरो की एक पलटन थी, आज उसे अपने हाथो बतरन माजने पड रहे है। ितलोतमा दौड- दौड कर बडे जोश से काम कर रही थी। उसे कोई िफक न थी। अपने हाथो से काम करने का, अपने को उपयोगी सािबत करने का ऐसा अचछा मौका पाकर उसकी खुशी की सीमा न रही । इतने मे ईशरदास आकर खडा हो गया और माया को बतरन माजत े

    — देखकर बोला यह आप कया कर रही है ? रहने दीिजए, मै अभी एक आदमी को बुलावाय े लाता हूँ। आपने मुझे कयो ने खबर दी, राम-राम, उठ आइये वहा से ।

    — माया ने लापरवाही से कहा कोई जररत नही, आप तकलीफ न कीिजए। मै अभी माजे लेती हूँ।

    ‘ इसकी जररत भी कया, ’मै एक िमनट मे आता हूँ। ‘नही, आप िकसी को न लाइए, ’मै इतने बतरन आसानी से धो लूँगी।

    ‘ ’अचछा तो लाइए मै भी कुछ मदद करँ। यह कहकर उसने डोल उठा िलया और बाहर से पानी लेने दौडा। पानी लाकर उसने

    मंजे हुए बतरनो को धोना शुर िकया। — माया ने उसके हाथ से बतरन छीनने की कोिशश करके कहा आप मुझे कयो शिमरनदा

    करते है ? रहने दीिजए, मै अभी साफ िकये डालती हूँ।‘ आप मुझे शिमरदा करती है या मै आपको शिमरदा कर रहा हूँ? आप यहॉँ मुसािफर है , मै

    यहा का रहने वाला हूँ, मेरा धमर है िक आपकी सेवा करँ। आपने एक जयादती तो यह की िक मुझे जरा भी खबर न दी, अब दसूरी जयादती यह कर रही है। मै इसे बदाशत नही कर

    ’सकता ।

    6

  • ईशरदास ने जरा देर मे सारे बतरन साफ करके रख िदये। ऐसा मालमू होता था िक वह ऐसे कामो का आदी है। बतरन धोकर उसने सारे बतरन पानी से भर िदये और तब माथे से

    – पसीना पोछता हुआ बोला बाजार से कोई चीज लानी हो तो बतला दीिजए, अभी ला दूँ।— माया जी नही, माफ कीिजए, आप अपने घर का रासता लीिजए।

    —ईशरदास ितलोतमा, आओ आज तुमहे सरै करा लाये।— माया जी नही, रहने दीिजए।ं इस वकत सैर करने नही जाती। माया ने यह शबद इतने रखेपन से कहे िक ईशरदास का मुंह उतर गया। उसने दुबारा

    कुछ न कहा। चुपके से चला गया। उसके जाने के बाद माया ने सोचा, मैने उसके साथ िकतनी बेमुरौवती की। रलेगाडी की उस दु: खद घटना के बाद उसके िदल मे बराबर पितशोध

    और मनुषयता मे लडाई िछडी हुई थी। अगर ईशरदास उस मौके पर सवगर के एक दतू की तरह न आ जाता तो आज उसकी कया हालत होती, यह खयाल करके उसके रोए ं खडे हो जाते

    थे और ईशादास के िलए उसके िदल की गहराइयो से कृतजता के शबद िनकलते । कया अपने ऊपर इतना बडा एहसान करने वाले के खनू से अपने हाथ रगंेगी ? लेिकन उसी क े हाथो से उसे यह मनहूस िदन भी तो देखना पडा ! उसी के कारण तो उसने रेल का वह सफर िकया था वना वह अकेले िबना िकसी दोसत या मददगार के सफर ही कयो करती ? उसी क े कारण तो आज वह वैधवय की िवपितया झेल रही है और सारी उम झेलेगी। इन बातो का खयाल करके उसकी आंखे लाल हो जाती, मुंह से एक गमर आह िनकल जाती और जी चाहता

    इसी वकत कटार लकेरचल पडे और उसका काम तमाम कर दे।६

    ज माया ने अिनतम िनशय कर िलया। उसने ईशरदास की दावत की थी। यही उसकी आिखरी दावत होगी। ईशरदास ने उस पर एहसान जरर िकये है लेिकन दुिनया मे

    कोई एहसान, कोई नेकी उस शोक के दाग को िमटा सकती है ? रात के नौ बजे ईशादास —आया तो माया ने अपनी वाणी मे पेम का आवेग भरकर कहा बैिठए, आपके िलए गमर-गमर पिूडयॉं िनकाल दूँ ?

    आ— ईशरदास कया अभी तक आप मरेे इनतजार मे बैठी हुई है ? नाहक गमी मे परेशान

    हुई। — माया ने थाली परसकर उसके सामने रखते हुए कहा मै खाना पकाना नही जानती ?

    अगर कोई चीज अचछी न लगे तो माफ कीिजएगा। ईशरदास ने खबू तारीफ करके एक- एक चीज खायी। ऐसी सवािदष चीजे उसने

    अपनी उम मे कभी न खायी थी।‘ आप तो कहती थी मै खाना पकाना नही जानती ?’‘ तो कया मै गलत कहती थी ?’‘ िबलकुल गलत। आपने खुद अपनी गलती सािबत कर दी। ऐसे खसते मैने िजनदगी

    ’मे भी न खाये थे।‘ आप मुझे बनाते है, ’अचछा साहब बना लीिजए।‘नही, मै बनाता नही, िबलकुल सच कहता हूँ। िकस- कीस चीज की तारीफ करं?

    चाहता हूँ िक कोई ऐब िनकालूँ, लेिकन सझूता ही नही। अबकी मै अपने दोसतो की दावत ’करंगा तो आपको एक िदन तकलीफ दूंगा।‘हा, शौक से कीिजए, ’मै हािजर हूँ।खात-े खाते दस बज गये। ितलोतमा सो गयी। गली मे भी सनाटा हो गया। ईशरदास

    चलने को तयैार हुआ, — तो माया बोली कया आप चले जाएगंे ? कयो न आज यही सो रिहए? मुझे कुछ डर लग रहा है। आप बाहर के कमरे मे सो रिहएगा, मै अनदर आंगन मे सो रहूँगी

    7

  • ईशरदास ने कण- — भर सोचकर कहा अचछी बात है। आपने पहले कभी न कहा िक आपको इस घर मे डर लगता है वना मै िकसी भरोसे की बडुढी औरत को रात को सोने के

    िलए ठीक कर देता । ईशरदास ने तो कमरे मे आसन जमाया, माया अनदर खाना खाने गयी। लेिकन आज

    उसके गले के नीचे एक कौर भी न उतर सका। उसका िदल जोर- जोर से घडक रहा था। – िदल पर एक डर सा छाया हुआ था। ईशरदास कही जाग पडा तो ? उसे उस वकत िकतनी

    शिमरनदगी होगी ! माया ने कटार को खबू तेज कर रखा था। आज िदन- भर उसे हाथ मे लेकर अभयास

    िकया । वह इस तरह वार करेगी िक खाली ही न जाये। अगर ईशरदास जाग ही पडा तो जानलवेा घाव लगेगा।

    जब आधी रात हो गयी और ईशरदास के खराटो की आवाजे कानो मे आने लगी तो माया कटार लेकर उठी पर उसका सारा शरीर काप रहा था। भय और संकलप, आकषरण और घृणा एक साथ कभी उसे एक कदम आगे बढा देती, कभी पीछे हटा देती । ऐसा मालमू होता

    था िक जैसे सारा मकान, सारा आसमान चकर खा रहा है कमरे की हर एक चीज घमूती हुई नजर आ रही थी। मगर एक कण मे यह बचेैनी दरू हो गयी और िदल पर डर छा गया। वह

    दबे पाव ईशरदास के कमरे तक आयी, िफर उसके कदम वही जम गये। उसकी आंखो से आंसू बहने लगे। आह, मै िकतनी कमजोर हूँ, िजस आदमी ने मेरा सवरनाश कर िदया, मेरी हरी- भरी खेती उजाड दी, मेरे लहलहाते हुए उपवन को वीरान कर िदया, मुझे हमेशा के िलए आग

    के जलते हुए कुडंो मे डाल िदया, उससे मै खनू का बदला भी नही ले सकती ! वह मेरी ही बहने थी, जो तलवार और बनदकू लकेर मैदान मे लडती थी, दहकती हुई िचता मे हसंते-हसंत े

    बैठ जाती थी। उसे उस वकत ऐसा मालमू हुआ िक िमसटर वयास सामने खडे है और उसे आगे बढने की पेरणा कर रहे है, कह रहे ह,ै कया तुम मेरे खनू का बदला न लोगी ? मेरी आतमा

    पितशोध के िलए तडप रही है । कया उसे हमेशा- हमेशा यो ही तडपाती रहोगी ? कया यही वफा की शतर थी ? इन िवचारो ने माया की भावनाओं को भडका िदया। उसकी आंखे खनू की तरह लाल हो गयी, होठ दातो के नीचे दब गये और कटार के हतथे पर मुटठी बधं गयी। एक

    उनमाद- सा छा गया। उसने कमरे के अनदर पैर रखा मगर ईशरदास की आंखे खुल गयी थी। कमरे मे लालटेन की मिदम रोशनी थी। माया की आहट पाकर वह चौका और िसर उठाकर — देखा तो खनू सदर हो गया माया पलय की मूितर बनी हाथ मे नगंी कटार िलये उसकी तरफ चली आ रही थी!

    — वह चारपाई से उठकर खडा हो गया और घबडाकर बोला कया है बहन ? यह कटार कयो िलये हुए हो ?

    — माया ने कहा यह कटार तुमहारे खनू की पयासी है कयोिक तुमने मेरे पित का खनू िकया है।

    — ईशरदास का चेहरा पीला पड गया । बोला मैने !‘ हा तुमने, तुमही ने लाहौर मे मेरे पित की हतया की, जब वे एक मुकदमे की पैरवी करने

    गये थे। कया तुम इससे इनकार कर सकते हो ? मेरे पित की आतमा ने खुद तुमहारा पता ’बतलाया है।‘ तो तमू िमसटर वयास की बीवी हो?’‘हा, मै उनकी बदनसीब बीवी हूँ और तुम मेरा सोहाग लटूनेवाले हो ! गो तुमने मेर े

    ऊपर एहसान िकये है लेिकन एहसानो से मरेे िदल की आग नही बुझ सकती। वह तुमहारी खनू ’ही से बुझेगी।

    ईशरदास ने माया की ओर याचना- — भरी आंखो से देखकर कहा अगर आपका यही फैसला है तो लीिजए यह सर हािजर है। अगर मरेे खनू से आपके िदल की आग बुझ जाय तो

    मै खुद उसे आपके कदमो पर िगरा दूँगा। लेिकन िजस तरह आप मरेे खनू से अपनी तलवार

    8

  • की पयास बुझाना अपना धमर समझती है उसी तरह मैने भी िमसटर वयास को कतल करना अपना धमर समझा। आपको मालमू है, वह एक रानीितक मुकदमे की परैवी करने लाहौर गये

    थे। लेिकन िमसटर वयास ने िजस तरह अपनी ऊंची काननूी िलयाकत का इसतेमाल िकया, पुिलस को झुठी शहादतो के तयैार करने मे िजस तरह मदद दी, िजस बेरहमी और बदेदी से बेकस और जयादा बेगुनाह नौजवानो को तबाह िकया, उसे मै सह न सकता था। उन िदनो

    अदालत मे तमाशाइयो की बेइनता भीड रहती थी। सभी अदालत से िमसटर वयास को कोसते हुए जाते थे मै तो मुकदमे की हकीकत को जानता था । इस िलए मरेी अनतरातमा िसफर

    कोसने और गािलयॉँ दनेे से शात न हो सकती थी । मै आपसे कया कहूँ । िमसटर वयास ने आखं खोलकर समझ- बझूकर झठू को सच सािबत िकया और िकतने ही घरानो को बेिचराग

    कर िदया आज िकतनी माए अपने बेटो के िलए खनू के आंसू रो रही है, िकतनी ही औरत े रडंापे की आग मे जल रही है। पुिलस िकतनी ही जयादितया करे, हम परवाह नही करते । पुिलस से हम इसके िसवा और उममीद नही रखते। उसमे जयादातर जािहल शोहदे लुचचे भर े

    हुए है । सरकार ने इस महकमे को कायम ही इसिलए िकया है िक वह िरआया को तगं करे। मगर वकीलो से हम इनसाफ की उममीद रखते है। हम उनकी इजजत करते है । वे

    उचचकोिट के पढे िलखे सजग लोग होते है । जब ऐसे आदिमयो को हम पुिलस के हाथो की कठपुतली बना हुआ देखते है तो हमारे कोध की सीमा नही रहती मै िमसटर वयास का पशंसक

    था। मगर जब मैने उनहे बेगुनाह मुलिजमो से जबरन जुमर का इकबाल कराते देखा तो मुझे उनसे नफरत हो गयी । गरीब मुलिजम रात िदन भर उलटे लटकाये जाते थे ! िसफर इसिलए िक वह अपना जुमर, तो उनहोने कभी नही िकया, इकबाल कर ले ! उनकी नाक मे

    लाल िमचर का धुआं डाला जाता था ! िमसटर वयास यह सारी जयादाितया िसफर अपनी आंखो से देखते ही नही थे, बिलक उनही के इशारे पर वह की जाती थी।

    माया के चेहरे की कठोरता जाती रही । उसकी जगह जायज गसुसे की गमी पैदा हुई – । बोली इसका आपके के पास कोई सबतू है िक उनहोने मुलिजमो पर ऐसी सिखतया की ?

    ‘ यह सारी बाते आमतौर पर मशहूर थी । लाहौर का बचचा बचचा जानता है। मैने खुद अपनी आंखो से देखी इसके िसवा मै और कया सबतू दे सकता हूँ उन बेचारो का बस इतना कसरू था। िक वह िहनदसुतान के सचचे दोसत थे, अपना सारा वकत पजा की िशका और सेवा

    मे खचर करते थे। भखूे रहते थे, पजा पर पुिलस हुकाम की सिखतयंा न होने देते थे, यही उनका गुनाह था और इसी गुनाह की सजा िदलाने मे िमसटर वयास पुिलस के दािहने हाथ बने

    हुए थे!’ माया के हाथ से खंजर िगर पडा। उसकी आंखो मे आंसू भर आये, बोली मुझे न मालमू था

    िक वे ऐसी हरकते भी कर सकते है। ईशरदास ने कहा- यह न समिझए िक मै आपकी तलवार से डर कर वकील साहब पर

    झठूे इलजाम, लगा रहा हूं । मैने कभी िजनदगी की परवाह नही की। मेरे िलए कौन रोने वाला बैठा हुआ है िजसके िलए िजनदगी की परवाह करँ। अगर आप समझती है िक मैने अनुंिचत हतया की है तो आप इस तलवार को उठाकर इस िजनदगी का खातमा कर दीिजए, मै जरा भी

    न िझझकूगा। अगर आप तलवार न उठा सके तो पुिलस को खबर कर दीिजए, वह बडी आसानी से मुझे दुिनया से रखसत कर सकती है। सबतू िमल जाना मुिशकल न होगा। मै

    खुद पुिलस के सामने जुमर का इकबाल कर लेता मगर मै इसे जुमर नही समझता। अगर एक जान से सैकडो जाने बच जाए ं तो वह खनू नही है। मै िसफर इसिलए िजनदा रहना चाहता हूँ

    िक शायद िकसी ऐसे ही मौके पर मेरी िफर जररत पडे माया ने रोते हुए- अगर तुमहारा बयान सही है तो मै अपना, खनू माफ करती हूँ तुमने

    जो िकया या बेजा िकया इसका फैसला ईशर करेगे। तुमसे मरेी पाथरना है िक मेरे पित के हाथो जो घर तबाह हुए है। उनका मुझे पता बतला दो, शायद मै उनकी कुछ सेवा कर सकूँ।

    -- ’ पेमचालीसा से

    9

  • पपपप

    त भीग चकुी थी। मै बरामदे मे खडा था। सामने अमीनुददौला पाकर नीदं मे डूबा खडा था। िसफर एक औरत एक तिकयादार वचें पर बैठी हुंई थी। पाकर के बाहर सडक के

    िकनारे एक फकीर खडा राहगीरो को दुआएं दे रहा था। खुदा और रसलू का वासता......राम और भगवान का वासता..... इस अंधे पर रहम करो ।

    रा – सडक पर मोटरो ओर सवािरयो का ताता बनद हो चुका था। इके दुके आदमी नजर

    आ जाते थे। फकीर की आवाज जो पहले नकारखाने मे ततूी की आवाज थी अब खुले मैदान की बुलंद पकुार हो रही थी ! एकाएक वह औरत उठी और इधर उधर चौकनी आंखो से

    देखकर फकीर के हाथ मे कुछ रख िदया और िफर बहुत धीमे से कुछ कहकर एक तरफ चली गयी। फकीर के हाथ मे कागज का टकुडा नजर आया िजसे वह बार बार मल रहा था। कया उस औरत ने यह कागज िदया है ?

    यह कया रहसय है ? उसके जानने के कूतहूल से अधीर होकर मै नीचे आया ओर फेकीर के पास खडा हो गया।

    मेरी आहट पाते ही फकीर ने उस कागज के पुजे को दो उंगिलयो से दबाकर मुझे िदखाया। और पछूा,- बाबा, देखो यह कया चीज है ? – मैने देखा दस रपये का नोट था ! – बोला दस रपये का नोट ह,ै कहा पाया ?

    फकीर ने नोट को अपनी झोली मे रखते हुए कहा- कोई खुदा की बनदी दे गई है। मैने ओर कछु ने कहा। उस औरत की तरफ दौडा जो अब अधरेे मे बस एक सपना बनकर रह गयी थी।

    – वह कई गिलयो मे होती हुई एक टूटे फूटे िगरे- पडे मकान के दरवाजे पर रकी, ताला खोला और अनदर चली गयी।

    रात को कुछ पछूना ठीक न समझकर मै लौट आया। रातभर मेरा जी उसी तरफ लगा रहा। एकदम तडके मै िफर उस गली मे जा पहुचा

    । मालमू हुआ वह एक अनाथ िवधवा है। – मैने दरवाजे पर जाकर पुकारा दवेी, मै तुमहारे दशरन करने आया हूँ। औरत बहार

    िनकल आयी। गरीबी और बेकसी की िजनदा तसवीर मैने िहचकते हुए कहा- रात आपने फकीर को..................

    – देवी ने बात काटते हुए कहा अजी वह कया बात थी, मुझे वह नोट पडा िमल गया था, मेरे िकस काम का था।

    मैने उस दवेी के कदमो पर िसर झुका िदया।- ’ पेमचालीसा से

    10

  • खुदी

    नी िजस वकत िदलदारनगर मे आयी, उसकी उम पाच साल से जयादा न थी। वह िबलकलु अकेली न थी, मा- बाप दोनो न मालमू मर गये या कही परदेस चले गये थे। मुती िसफर

    इतना जानती थी िक कभी एक दवेी उसे िखलाया करती थी और एक दवेता उसे कंधे पर लेकर खेतो की सैर कराया करता था। पर वह इन बातो का िजक कुछ इस तरह करती थी

    िक जैसे उसने सपना देखा हो। सपना था या सचची घटना, इसका उसे जान न था। जब कोई पछूता तरेे मॉँ- बाप कहा गये ? तो वह बेचारी कोई जवाब देने के बजाय रोने लगती और

    — यो ही उन सवालो को टालने के िलए एक तरफ हाथ उठाकर कहती ऊपर। कभी आसमान — ‘ ’ ‘ ’ की तरफ देखकर कहती वहा। इस ऊपर और वहा से उसका कया मतलब था यह

    िकसी को मालमू न होता। शायद मुनी को यह खुद भी मालमू न था। बस, एक िदन लोगो ने उसे एक पेड के नीचे खलेते देखा और इससे जयादा उसकी बाबत िकसी को कुछ पता न था।

    मु

    लडकी की सरूत बहुत पयारी थी। जो उसे देखता, मोह जाता। उसे खाने- पीने की कुछ िफक न रहती। जो कोई बुलाकर कुछ दे देता, वही खा लेती और िफर खेलने लगती।

    शकल- सरूज से वह िकसी अचछे घर की लडकी मालमू होती थी। गरीब-से- गरीब घर मे भी उसके खाने को दो कौर और सोने को एक टाट के टकुडे की कमी न थी। वह सबकी थी, उसका कोई न था।

    इस तरह कुछ िदन बीत गये। मुनी अब कुछ काम करने के कािबल हो गयी। कोई कहता, जरा जाकर तालाब से यह कपडे तो धो ला। मुनी िबना कुछ कहे- सुने कपडे लकेर

    चली जाती। लेिकन रासते मे कोई बलुाकर कहता, बेटी, कुऍं से दो घडे पानी तो खीच ला, तो वह कपडे वही रखकर घडे लेकर कुऍं की तरफ चल देती। जरा खेत से जाकर थोडा साग तो ले आ और मुनी घडे वही रखकर साग लेने चली जाती। पानी के इनतजार मे बैठी हुई

    औरत उसकी राह देखत-े देखते थक जाती। कुऍं पर जाकर देखती है तो घडे रखे हुए है। वह मुनी को गािलयॉँ देती हुई कहती, आज से इस कलमुहँी को कुछ खाने को न दूँगी। कपड े के इनतजार मे बैठी हईु औरत उसकी राह देखते- देखते थक जाती और गुससे मे तालाब की

    तरफ जाती तो कपडे वही पडे हुए िमलते। तब वह भी उसे गािलयॉँ देकर कहती, आज से इसको कुछ खाने को न दूँगी। इस तरह मुनी को कभी- कभी कुछ खाने को न िमलता और

    तब उसे बचपन याद आता, जब वह कुछ काम न करती थी और लोग उसे बुलाकर खाना िखला देते थे। वह सोचती िकसका काम करँ, िकसका न करँ िजसे जवाब दूँ वही नाराज हो

    जायेगा। मरेा अपना कौन ह,ै मै तो सब की हूँ। उसे गरीब को यह न मालमू था िक जो सब का होता है वह िकसी का नही होता। वह िदन िकतने अचछे थे, जब उसे खाने- पीने की और

    िकसी की खुशी या नाखुशी की परवाह न थी। दुभागय मे भी बचपन का वह समय चैन का था।

    कुछ िदन और बीते, मुनी जवान हो गयी। अब तक वह औरतो की थी, अब मदो की —हो गयी। वह सारे गॉवँ की पेिमका थी पर कोई उसका पेमी न था। सब उससे कहते थे मै तुम पर मरता हूँ, तुमहारे िवयोग मे तारे िगनता हूँ, तुम मरेे िदलोजान की मुराद हो, पर उसका

    सचचा पेमी कौन है, इसकी उसे खबर न होती थी। कोई उससे यह न कहता था िक तू मेरे दुख- ददर की शरीक हो जा। सब उससे अपने िदल का घर आबाद करना चाहते थे। सब

    उसकी िनगाह पर, एक मिदम- सी मुसकराहट पर कुबान होना चाहते थे; पर कोई उसकी बाह पकडनेवाला, उसकी लाज रखनेवाला न था। वह सबकी थी, उसकी मुहबबत के दरवाज े सब पर खुले हुए थे ; पर कोई उस पर अपना ताला न डालता था िजससे मालमू होता िक यह

    उसका घर ह,ै और िकसी का नही।

    11

  • वह भोली- भाली लडकी जो एक िदन न जाने कहॉँ से भटककर आ गयी थी, अब गॉँव की रानी थी। जब वह अपने उतत वको को उभारकर रप- गवर से गदरन उठाये, नजाकत से

    लचकती हुई चलती तो मनचले नौजवान िदल थामकर रह जाते, उसके पैरो तले ऑंखे िबछाते। कौन था जो उसके इशारे पर अपनी जान न िनसार कर देता। वह अनाथ लडकी

    िजसे कभी गुिडयॉँ खेलने को न िमली, अब िदलो से खेलती थी। िकसी को मारती थी। िकसी को िजलाती थी, िकसी को ठुकराती थी, िकसी को थपिकयॉँ देती थी, िकसी से रठती

    थी, िकसी को मनाती थी। इस खले मे उसे कतल और खनू का- सा मजा िमलता था। अब पॉँसा पलट गया था। पहले वह सबकी थी, कोई उसका न था; अब सब उसके थे, वह िकसी

    की न थी। उसे िजसे चीज की तलाश थी, वह कही न िमलती थी। िकसी मे वह िहममत न थी जो उससे कहता, आज से तू मेरी है। उस पर िदल नयौछावर करने वाले बहुतेरे थे, सचचा

    साथी एक भी न था। असल मे उन सरिफरो को वह बहुत नीची िनगाह से देखती थी। कोई उसकी मुहबबत के कािबल नही था। ऐसे पसत- िहममतो को वह िखलौनो से जयादा महतव न

    देना चाहती थी, िजनका मारना और िजलाना एक मनोरजंन से अिधक कुछ नही। िजस वकत़ कोई नौजवान िमठाइयो के थाल और फूलो के हार िलये उसके सामने

    खडा हो जाता तो उसका जी चाहता; मुंह नोच लूँ। उसे वह चीजे कालकूट हलाहल जैसी लगती। उनकी जगह वह रखी रोिटयॉँ चाहती थी, सचचे पेम मे डूबी हुई। गहनो और अशिफरयो के ढरे उसे िबचछू के डकं जैसे लगते। उनके बदले वह सचची, िदल के भीतर से

    िनकली हुई बाते चाहती थी िजनमे पेम की गंध और सचचाई का गीत हो। उसे रहने को महल िमलते थे, पहनने को रेशम, खाने को एक-से- एक वयजंन, पर उसे इन चीजो की आकाका न

    थी। उसे आकाका थी, फूस के झोपड,े मोट-े झोटे सखूे खाने। उसे पाणघातक िसिदयो से पाणपोषक िनषेध कही जयादा िपय थे, खुली हवा के मुकाबले मे बदं िपजंरा कही जयादा चाहेता

    ! एक िदन एक परदेसी गाव मे आ िनकला। बहुत ही कमजोर, दीन- हीन आदमी था।

    एक पेड के नीचे सतू खाकर लटेा। एकाएक मुनी उधर से जा िनकली। मुसािफर को — देखकर बोली कहा जाओगे ?

    मुसािफर ने बेरखी से जवाब िदया- जहनुम ! मुनी ने मुसकराकर कहा- कयो, कया दुिनया मे जगह नही ?

    ‘ औरो के िलए होगी, ’मेरे िलए नही।‘ िदल पर कोई चोट लगी है ?’

    मुसािफर ने जहरीली हसंी हसंकर कहा- बदनसीबो की तकदीर मे और कया है ! रोना- धोना और डूब मरना, यही उनकी िजनदगी का खुलासा है। पहली दो मंिजल तो तय कर चुका,

    अब तीसरी मंिजल और बाकी ह,ै कोई िदन वह परूी हो जायेगी; ईशर ने चाहा तो बहुत जलद। यह एक चोट खाये हुए िदल के शबद थे। जरर उसके पहलू मे िदल है। वना यह ददर

    कहा से आता ? — मुनी बहुत िदनो से िदल की तलाश कर रही थी बोली कही और वफा की तलाश कयो नही करते ?

    — मुसािफर ने िनराशा के भव से उतर िदया तेरी तकदीर मे नही, वना मेरा कया बना- बनाया घोसला उजड जाता ? दौलत मेरे पास नही। रप- रगं मेरे पास नही, िफर वफा की देवी

    मुझ पर कयो मेहरबान होने लगी ? पहले समझता था वफा िदल के बदले िमलती है, अब मालमू हुआ और चीजो की तरह वह भी सोने- चॉँदी से खरीदी जा सकती है।

    मुनी को मालमू हुआ, मेरी नजरो ने धोखा खाया था। मुसािफर बहुत काला नही, िसफर सॉँवला। उसका नाक- —नकशा भी उसे आकषरक जान पडा। बोली नही, यह बात नही, तुमहारा

    पहला खयाल ठीक था।

    12

  • यह कहकर मुनी चली गयी। उसके हृदय के भाव उसके संयम से बाहर हो रहे थे। मुसािफर िकसी खयाल मे डूब गया। वह इस सुनदरी की बातो पर गौर कर रहा था, कया

    सचमुच यहा वफा िमलेगी ? कया यहॉँ भी तकदीर धोखा न देगी ? मुसािफर ने रात उसी गॉँव मे काटी। वह दसूरे िदन भी न गया। तीसरे िदन उसने

    — एक फूस का झोपडा खडा िकया। मुनी ने पछूा यह झोपडा िकसके िलए बनाते हो ? — मुसािफर ने कहा िजससे वफा की उममीद है।

    ‘ चले तो न जाओगे?’‘ ’झोपडा तो रहेगा।‘ ’खाली घर मे भतू रहते है।‘ ’अपने पयारे का भतू ही पयारा होता है।

    दसूरे िदन मुनी उस झोपडे मे रहने लगी। लोगो को देखकर ताजजुब होता था। मुनी उस झोपडे मे नही रह सकती। वह उस भोले मुसािफर को जरर द़गा देगी, यह आम खयाल

    था, लेिकन मुनी फूली न समाती थी। वह न कभी इतनी सुनदर िदखायी पडी थी, न इतनी खुश। उसे एक ऐसा आदमी िमल गया था, िजसके पहलू मे िदल था।

    2 िकन मुसािफर को दसूरे िदन यह िचनता हुई िक कही यहा भी वही अभागा िदन न देखना पडे। रप मे वफा कहॉँ ? उसे याद आया, पहले भी इसी तरह की बाते हुई थी, ऐसी ही

    कसम खायी गयी थी, एक दसूरे से वादे िकए गए थे। मगर उन कचचे धागो को टूटते िकतनी देर लगी ? वह धागे कया िफर न टूट जाएगंे ? उसके किणक आननद का समय बहुत जलद बीत गया और िफर वही िनराशा उसके िदल पर छा गयी। इस मरहम से भी उसके िजगर का जखम न भरा। तीसरे रोज वह सारे िदन उदास और िचिनतत बैठा रहा और चौथे रोज लापता

    हो गया। उसकी यादगार िसफर उसकी फूस की झोपडी रह गयी।

    ले

    मुनी िदन- भर उसकी राह देखती रही। उसे उममीद थी िक वह जरर आयेगा। लेिकन महीनो गुजर गये और मुसािफर न लौटा। कोई खत भी न आया। लेिकन मुनी को उममीद थी,

    वह जरर आएगा। साल बीत गया। पडेो मे नयी- नयी कोपले िनकली, फूल िखले, फल लगे, काली घटाए ं

    आयी, िबजली चमकी, यहा तक िक जाडा भी बीत गया और मुसािफर न लौटा। मगर मुनी को अब भी उसके आने की उममीद थी; वह जरा भी िचिनतत न थी, भयभीत न थी वह िदन-भर

    मजदरूी करती और शाम को झोपडे मे पड रहती। लेिकन वह झोपडा अब एक सरुिकत िकला था, जहा िसरिफरो के िनगाह के पाव भी लंगडे हो जाते थे।

    एक िदन वह सर पर लकडी का गटा िलए चली आती थी। एक रिसयो ने छेडखानी —की मुनी, कयो अपने सुकुमार शरीर के साथ यह अनयाय करती हो ? तुमहारी एक कृपा दृिष पर इस लकडी के बराबर सोना नयौछावर कर सकता हूँ।

    — मुनी ने बडी घृणा के साथ कहा तुमहारा सोना तुमहे मुबारक हो, यहा अपनी मेहनत का भरोसा है।

    ‘ कयो इतना इतराती हो, ’अब वह लौटकर न आयेगा। — मुनी ने अपने झोपडे की तरफ इशारा करके कहा वह गया कहा जो लौटकर आएगा

    ? मेरा होकर वह िफर कहा जा सकता है ? वह तो मरेे िदल मे बैठा हुआ है ! — इसी तरह एक िदन एक और पेमीजन ने कहा तुमहारे िलए मेरा महल हािजर है। इस

    टूट-े फूटे झोपडे मे कयो पडी हो ? — मुनी ने अिभमान से कहा इस झोपडे पर एक लाख महल नयौछावर है। यहा मैने वह

    चीज पाई ह,ै जो और कही न िमली थी और न िमल सकती है। यह झोपडा नही है, मेरे पयार े का िदल है !

    13

  • इस झोपडे मे मुनी ने सतर साल काटे। मरने के िदन तक उसे मुसािफर के लौटने की उममीद थी, उसकी आिखरी िनगाहे दरवाजे की तरफ लगी हुई थी। उसके खरीदारो मे कुछ तो मर गए, कुछ िजनदा है, मगर िजस िदन से वह एक की हो गयी, उसी िदन से उसक े चेहरे पर दीिपत िदखाई पडी िजसकी तरफ ताकते ही वासना की आंखे अंधी हो जाती। खुदी

    जब जाग जाती है तो िदल की कमजोिरया उसके पास आते डरती है।-‘ ’ खाके परवाना से

    14

  • पपपप पपपप न सौ पैसठ िदन, कई घणटे और कई िमनट की लगातार और अनथक दौड- धपू के बाद मै आिखर अपनी मंिजल पर धड से पहुचँ गया। बडे बाबू के दशरन हो गए। िमटी के

    गोले ने आग के गोले का चकर परूा कर िलया। अब तो आप भी मेरी भगूोल की िलयाकत के कायल हो गए। इसे रपक न समिझएगा। बडे बाबू मे दोपहर के सरूज की गमी और रोशनी

    थी और मै कया और मेरी िबसात कया, एक मुठी खाक। बडे बाबू मुझे देखकर मुसकराये। हाय, यह बडे लोगो की मुसकराहट, मेरा अधमरा- सा शरीर कापते लगा। जी मे आया बडे बाबू

    के कदमो पर िबछ जाऊँ। मै कािफर नही, गािलब का मरुीद नही, जनत के होने पर मुझे परूा यकीन ह,ै उतरा ही परूा िजतना अपने अंधेरे घर पर। लेिकन फिरशते मुझे जनत ले जाने क े

    िलए आए तो भी यकीनन मुझे वह जबरदसत खुशी न होती जो इस चमकती हुई मुसकराहट से हुई। आंखो मे सरसो फूल गई। सारा िदल और िदमाग एक बगीचा बन गया। कलपना ने िमस

    के ऊंचे महल बनाने शुर कर िदय। सामने कुिसरयो, पदो और खस की टिटयो से सजा- सजाया कमरा था। दरवाजे पर उममीदवारो की भीड लगी हुई थी और ईजािनब एक कुसी पर

    शान से बैठे हुए सबको उसका िहससा देने वाले खुदा के दुिनयाबी फजर अदा कर रहे थे। नजर- िमयाज का तफूान बरपा था और मै िकसी तरफ आंख उठाकर न देखता था िक जैसे

    मुझे िकसी से कुछ लेना- देना नही।

    ती

    अचानक एक शरे जैसी गरज ने मेरे बनते हुए महल मे एक भचूाल- —सा ला िदया कया काम ह?ै हाय र,े ये भोलापन ! इस पर सारी दुिनया के हसीनो का भोलापन और बेपरवाही िनसार है। इस डयाढी पर माथा रगडते- रगडते तीने सौ पैसठ िदन, कई घणटे और कई िमनट

    गुजर गए। चौखट का पतथर िघसकर जमीन से िमल गया। ईदू िबसाती की दुकान के आधे िखलौने और गोवदरन हलवाई की आधी दुकान इसी डयौढी की भेट चढ गयी और मुझसे आज

    सवाल होता ह,ै कया काम है !

    मगर नही, यह मेरी जयादती है सरासर जुलम। जो िदमाग बडे- बडे मुलकी और माली तमदुनी मसलो मे िदन- रात लगा रहता ह,ै जो िदमाग डाकूमेटो, सरकुलरो, परवानो, हकुमनामो,

    नकशो वगरैह के बोझ से दबा जा रहा हो, उसके नजदीक मुझ जैसे खाक के पुतले की हसती ही कया। मचछर अपने को चाहे हाथी समझ ले पर बैल के सीग को उसकी कया खबर। मैने — दबी जबान मे कहा हुजूर की कदमबोसी के िलए हािजर हुआ।

    — बडे बाबू गरजे कया काम ह?ै अबकी बार मेरे रोए ं खडे हो गए। खुदा के फजल से लहीम- शहीम आदमी हूँ, िजन

    िदनो कालेज मे था, मेरे डील- डौल और मरेी बहादरुी और िदलेरी की धमू थी। हाकी टीम का कपतान, फुटवाल टीम का नायब कपतान और िककटे का जनरल था। िकतने ही गोरो के

    िजसम पर अब भी मेरी बहादुरी के दाग बाकी होगे। मुमिकन है, दो- चार अब भी बैसािखया ‘ ’ ‘ ’ िलए चलते या रेगते हो। बमबई कािनकल और टाइमस मे मेरे गेदो की धमू थी। मगर इस — वकत बाबू साहब की गरज सुनकर मेरा शरीर कापने लगा। कापते हुए बोला हुजूर की

    कदमबोसी के िलए हािजर हुआ। — बडे बाबू ने अपना सलीपरदार पैर मरेी तरफ बढाकर कहा शौक से लीिजए, यह

    कदम हािजर है, िजतने बोसे चाहे लीिजए, बेिहसाब मामले है, मुझसे कसम ले लीिजए जो मै िगनूँ, जब तक आपका मुंह न थक जाए, िलए जाइए ! मेरे िलए इससे बढकर खुशनसीबी का

    कया मौका होगा ? औरो को जो बात बडे जप-तप, बडे संयम- वरत से िमलती है, वह मुझे बैठ-े िबठाये बगैर हड- िफटकरी लगाए हािसल हो गयी। वललाह, हूं मै भी खुशनसीब । आप अपने

    दोसत-अहबाब, आतमीय- सवजन जो हो, उन सबको लाये तो और भी अचछा, मेरे यहा सबको छूट है !

    15

  • हसंी के पदे मे यह जो जुलम बडे बाबू कर रहे थे उस पर शायद अपने िदल मे उनको नाज हो। इस मनहूस तकदीर का बुरा हो, जो इस दरवाजे का िभखारी बनाए हुए है। जी मे

    तो आया िक हजरत के बढे हुए पैर को खीच लूं और आपको िजनदगी- भर के िलए सबक दे दूँ िक बदनसीबो से िदललगी करने का यह मजा है मगर बदनसीबी अगर िदल पर जब न कराये,

    िजललत का अहसास न पैदा करे तो वह बदनसीबी कयो कहलाए। मै भी एक जमाने मे इसी तरह लोगो को तकलीफ पहुँचाकर हसंता था। उस वकत इन बडे बाबुओं की मरेी िनगाह मे कोई हसती न थी। िकतने ही बडे बाबुओं को रलाकर छोड िदया। कोई ऐसा पोफेसर न था,

    िजसका चेहरा मेरी सरूत देखते ही पीला न पड जाता हो। हजार- हजार रपया पाने वाले पोफेसरो की मुझसे कोर दबकी थी। ऐसे कलको को मै समझता ही कया था। लेिकन अब वह

    जमाना कहा। िदल मे पछताया िक नाहक कदमबोसी का लफज जबान पर लाया। मगर अपनी बात कहना जररी था। मै पका इरादा करके अया था िक उस डयौढी से आज कुछ लेकर ही उठंूगा। मेरे धीरज और बडे बाबू के इस तरह जान- बझूकर अनजान बनने मे

    —रससाकशी थी। दबी जबान से बोला हुजूर, गेजुएट हू